जिज्ञासा: धर्मात्मा मनुष्य को दुख क्यों मिलता है और पापी मजा क्यों करते?
स्रोत – सत्यमेधा सत्संग
धर्मात्मा मनुष्य को दुख क्यों मिलता है और पापी मजा क्यों करते?
ऐसा कभी हुआ ही नहीं। अगर दुख मिल रहा हो धर्मात्मा को, तो वह छिपे पापी हैं और कुछ भी नहीं। और अगर पापी आनंद कर रहा हो, तो तुम्हारे समझने में कहीं भूल हो गयी है, वह पापी नहीं है। पाप से और आनंद मिलता ही नहीं, मिल ही नहीं सकता। अगर तुम पाओ कि कोई चोर बड़ा सुखी है, तो उसका मतलब इतना ही हुआ कि चोरी के अतिरिक्त भी उसमें कुछ और गुण होंगे जिनके कारण सुख मिल रहा है—चोरी से कैसे सुख मिल सकता है? हो सकता है साहसी हो। चोर अक्सर साहसी होते हैं।
दुनिया में सौ मे निन्यानबे आदमी इसीलिए चोर नहीं हैं कि साहस नहीं है और कोई खास बात नहीं है। कोई गुण वगैरह नहीं है, कोई नीति वगैरह नहीं है, सिर्फ कमजोर हैं, काहिल हैं
, नपुंसक हैं, चोरी करने से डरते हैं, कि कहीं पकड़े न जाएं। तुम भी जरा सोचो, अगर तुम्हें कोई बिलकुल गारंटी दे दे कि तुम पकड़े नहीं जाओगे, फिर तुम चोरी करोगे कि नहीं? पकड़े जाओगे ही नहीं, इसकी पक्की गारंटी है, तो तुम फिर कहोगे, फिर क्यों नहीं करनी, फिर कर ही लें। तो तुम इतने दिन से जो चोरी नहीं कर रहे थे, वह चोरी गलत है इस कारण नहीं, बल्कि पकड़े जाने का भय है। प्रतिष्ठा पर दाग लगेगा, बेइज्जती होगी, लोग क्या कहेंगे, कि आप और चोर! अहंकार को चोट लगेगी, बस, उसी डर से रुके थे।
सौ अचोरों में निन्यानबे सिर्फ भय के कारण अचोर हैं, इसलिए दुख पाएंगे। वे सोचेगे कि हम चोरी नहीं कर रहे और दुख क्यों पा रहे हैं? चोर तो हो ही तुम, चोरी की या नहीं, इससे थोड़ी ही कोई चोर होता है! चोर होना तुम्हारी चेतना की दशा है।
नसरुद्दीन एक ट्रेन में सफर करता था।
उस डिब्बे में दो ही थे, वह था और एक सुंदर स्त्री थी। उसने सुंदर स्त्री को कहा कि अगर मैं हजार रुपए दूं तो रात मेरे साथ सोओगी? उस स्त्री ने कहा, तुमने मुझे समझा क्या है? चेन खींच दूंगी, पुलिस को बुलाऊंगी। उसने कहा, नाराज न होओ, मैं तो सिर्फ एक निवेदन किया। अगर दस हजार दूं तो? स्त्री शांत हो गयी, फिर उाने नहीं चिल्लाया। उसने कहा कि पुलिस को बुलाऊंगी और चेन खींच दूंगी, मुल्ला ने कहा, दस हजार? तो उसने कहा, दस हजार के लिए मैं राजी हो सकती हूं; मुल्ला ने कहा, ठीक, और अगर दस रुपया दूं? तब तो वह स्त्री एकदम खड़ी हो गयी, उसने कहा, अभी चेन खींचती हूं;अभी पुलिस को बुलाती हूं। पर मुल्ला ने कहा, यह क्या बात हुई? उस स्त्री ने कहा, आप जानते नहीं मैं कौन हूं? मुल्ला ने कहा, मैं समझ गया तुम कौन हो, अब तो हम मोल— भाव कर रहे हैं। दस हजार में जब तुम सोने को राजी हो तो यह तो मैं जान ही गया कि तुम कौन हो, अब तो सिर्फ मोल— भाव की बात है —तो मैं व्यापारी आदमी हूं! वह तो मैंने दस हजार इसीलिए कहे थे कि पहचान लूं कि तुम हो कौन। वह बात खतम हो गयी, वह निर्णय हो चुका, अब नाहक चेन वगैरह न खींचो, बैठो;अब तो मोल— भाव कर लें बैठकर, जो भी तय हो जाए, ठीक है।
तुम भी सोच लेना, तुम्हारी जीवन—दशा तुम्हारी चोरी करने से चोर की नहीं होती, चोरी की वृत्ति! उस वृत्ति के कारण तुम दुख पाते हो। और हो सकता है चोर अगर सुख पा रहा है तो जरूर उसमें कुछ होगा, कुछ होगा जिससे सुख आता है—साहस होगा, बल होगा, दाव पर लगाने की हिम्मत होगी, निश्चित मन होगा कि हो जो हो। दुनिया क्या कहती है, इसकी फिकर न करता होगा। थोड़ी बगावती दशा होगी। कुछ होगा उसके भीतर, कुछ गुण होगा जिसके कारण सुख मिलता है।
तुम्हारा महात्मा है, तुम कहते हो, महात्मा है, बड़ा दुख पा रहा है। लेकिन दुख पाएगा तो सबूत है कि कहीं कुछ बात होगी। कभी महात्मा दुख नहीं पाता;पा नहीं सकता, क्योंकि दुख छाया है झूठ की। दुख छाया है असत्य की। दुख छाया है माया की। अब अगर महात्मा दुख पा रहा है तो कहीं न कहीं कोई भ्रांति है, महात्मा है नहीं। और अगर कहीं कोई पापी आनंद पा रहा है, तो वहां भी तुम्हारी समझ में कुछ भूल हो गयी है। फिर से देखना, गौर से देखना।
कभी—कभी शराबियों में ऐसे सज्जन मिल जाते हैं, जो सज्जनों में न मिलें। अक्सर शराबी जितने सरल होते हैं, उतने सज्जन नहीं होते। सरलता आनंद लाती है। अगर कोई सरलता की वजह से शराब पी रहा है तो निश्चित ही आनंद होगा। और अगर कोई सिर्फ स्वर्ग पाने के लिए शराब नहीं पी रहा है, तो आनंद नहीं हो सकता। क्योंकि वहा वासना है। सरलता नहीं है, गणित है, चालबाजी है। वह आदमी होशियार है। वह कह रहा है, स्वर्ग जाना है मुझे। स्वर्ग जाना है तो इतना चुकाना पड़ेगा।
तुम अपने भीतर ही परीक्षण करो और तुम पाओगे जब भी तुम सच के अनुकूल होते हो, तत्क्षण वर्षा होती है आनंद की। धूप खिल जाती है, फूल उमग आते हैं, सुवासित हो जाते हो।
संसार क्या है? माया क्या है? एक जाल है, जो हमने बुना—मकड़ी के जाल की तरह—और जिसमें हम खुद फंस गए हैं..
अथातो भक्ति जिज्ञासा (शांडिल्य)