धर्मचक्र प्रवर्तनाय: भारतीय पंथनिरपेक्षता ही वास्तविक धर्म है – मृत्युंजय झा
मृत्युंजय झा (आरएसएस कार्यकर्त्ता )
भारतीय पंथनिरपेक्षता का कांसेप्ट क्या है ?
भारतीय धर्मनिरपेक्षता देश में विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सद्भाव बनाए रखने का एक अनूठा तरीका है। धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी विचार के विपरीत, जो अक्सर धर्म और राज्य के पूर्ण पृथक्करण का अर्थ रखता है, भारतीय धर्मनिरपेक्षता का उद्देश्य विविध धार्मिक प्रथाओं को संतुलित करना है, जबकि यह सुनिश्चित करना है कि राज्य किसी भी धर्म को दूसरे धर्म पर तरजीह न दे। सभी धर्म समम्यक और किसी भी पन्थ से पूर्णतः निर्लिप्त रहे और सबमे सम भाव रखे।
भारतीय धर्मनिरपेक्षता का इतिहास और विकास कैसे हुआ ?
भारतीय धर्मनिरपेक्षता की जड़ें स्वतंत्रता आंदोलन और भारतीय संविधान के निर्माण में देखी जा सकती हैं। भारत के संस्थापक पिताओं ने एक ऐसे राज्य की कल्पना की थी जो सभी धर्मों का सम्मान करता हो लेकिन किसी विशिष्ट धार्मिक सिद्धांत का पालन न करता हो। यह भारतीय संविधान में निहित था, जो धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देता है और धर्म के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
वास्तव में पंथनिरपेक्षता ही हमारा धर्म है rss thoughts
जिस देश के संसद भवन के प्रवेश द्वारों पर तथा दीवारों पर धर्म से संबंधित कई बोध वाक्य लिखे हो उस देश को धर्मनिरपेक्ष कहना एक विडंबना ही है और इस विडंबना का प्रमुख कारण है सेक्युलर इस शब्द का गलत अनुवाद करके उसे ही सही मानना और उसे प्रचलित करना। सेक्युलर का संविधान में भी एक जगह “पंथनिरपेक्ष” और दूसरी जगह “लौकिक” इस रुप में अनुवाद किया गया है परंतु फिर भी हम अपने आप को धर्मनिरपेक्ष कह कर अपना ही मजाक उड़ा रहे हैं। वास्तव में पंथनिरपेक्षता ही हमारा धर्म है
राज्यसभा ओर लोकसभा के दीवारों पर लिखे इन बोध वाक्यों पर थोड़ी नजर डालें
- सत्यं वद धर्म चर • अहिंसा परमोधर्मः
- वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम् • धर्मं स न यत्र न सत्यमस्तु
- धर्मचक्र प्रवर्तनाय
वास्तव में मानवोचित लौकिक कर्म को ही धर्म कहा गया है। धर्म सापेक्ष होना ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। अतः हमें सोचना होगा कि अपने आप को धर्मनिरपेक्ष कहना गौरव की बात है या शर्म की।
हमारे लिए गौरव की बात यह है कि हम पंथनिरपेक्ष है। विश्व में भारत ही ऐसा देश है जो किसी पंथ विशेष के प्रति दुराग्रही ना होकर सभी पंथों को एक ही छत्रछाया में रखता है। यह देश विविध पंथों के सह अस्तित्व का उदाहरण बना है। अपने मत या पंथ का दुराग्रह और उसके कारण औरों का मतांतरण करवा कर अपनी संख्या बढ़ाने की राजनीतिक कुटिलता मानव धर्म के विपरीत कार्य है। भारत ने मानव धर्म को चिर पुरातन होते हुए भी नित्य नूतन बनाए रखा है। यही सनातन परंपरा है जिसे भारत ने निभाया है। इसी परंपरा का प्रचलित नाम है हिंदू या हिंदुत्व। यही पंथनिरपेक्षता का पर्यायवाची शब्द है। इसी संदर्भ में हमें स्वामी विवेकानंद के उस कथन को चरितार्थ कर आचरण में लाना होगा जो उन्होंने शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में कहा था, “मुझे हिंदू होने पर गर्व है, गर्व से कहो हम हिंदू है”। इस पृष्ठभूमि के परिप्रेक्ष्य में किसी भी देश का “हिंदू राष्ट्र” होना यह उसके सेकुलर अर्थात पंथनिरपेक्ष होने का प्रमाण पत्र है। हिंदुत्व का विस्तार ही पूरे विश्व को पंथनिरपेक्ष बनाए रख सकता है। यही मार्ग “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना को साकार करेगा।
भारतीय धर्म निरपेक्षता क्या है? rss thoughts
विश्व के सबसे बड़े भारतीय लोकतंत्र में भारतीय धर्मनिरपेक्षता एक ऐसी अवधारणा है जो दुनिया के अन्य देशों में देखी जाने वाली धर्मनिरपेक्षता से बिलकुल ही अलग है। यह एक प्रोग्रेसिव सकारात्मक और समावेशी दृष्टिकोण है जो सभी धर्मों का सम्मान करता है। सबको सामान अवसर देता है। वह भी बिना भेद भाव के।
भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आवश्यकता क्यों है?
- मूलभूत इसके कई कारण है जिसमे से सबसे ज्यादा मान्य लोगो की स्वीकार्यता है। यह पर कुछ उदहारण है जैसे –
- विविधता में एकता: भारत एक विविध देश है। धर्मनिरपेक्षता विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोगों को एक साथ लाने में मदद करती है।
- समाज में शांति: धर्मनिरपेक्षता धार्मिक आधार पर होने वाले संघर्षों को रोकने में मदद करती है।
- आधुनिक भारत का निर्माण: धर्मनिरपेक्षता एक आधुनिक और विकसित समाज के निर्माण के लिए आवश्यक है।
- सब का एक सामान विकास : यह धारणा सबका एक साथ विकाश सुनिश्चित करता है।
व्यवहार में भारतीय धर्मनिरपेक्षता क्या है ?
व्यवहार में, भारतीय धर्मनिरपेक्षता विभिन्न तरीकों से प्रकट होती है।
राज्य धार्मिक संस्थाओं को सहायता प्रदान करता है, धार्मिक छुट्टियों को मान्यता देता है, और यह सुनिश्चित करता है कि धार्मिक समुदाय अपनी आस्था का स्वतंत्र रूप से पालन कर सकें।
हालाँकि, यह धार्मिक कट्टरता को रोकने और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए कानून भी लागू करता है। उदाहरण के लिए, राज्य धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप कर सकता है यदि उन्हें मानवाधिकारों या सार्वजनिक व्यवस्था का उल्लंघन करने वाला माना जाता है।
भारतीय पंथनिरपेक्षता की चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
सिद्धांत और किताबी बातों में भारतीय धर्मनिरपेक्षता का नैतिक स्तर समभाव और निर्लिप्तता का है , सरकारी और सत्ता धारी सिस्टम अपने पार्टी या समूह विशेष के लिए पिछले दिनों में इसपर जैम कर बवाल और दुरपयोग भी हुआ है। हालाँकि भारतीय धर्मनिरपेक्षता को एक सामंजस्यपूर्ण समाज बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, लेकिन यह अपनी चुनौतियों से रहित नहीं है। आलोचकों का तर्क है कि राज्य कभी-कभी तटस्थ रहने के लिए संघर्ष करता है, खासकर धार्मिक संघर्षों के दौरान। इसके अतिरिक्त, धार्मिक प्रथाओं का सम्मान करने और धर्मनिरपेक्ष कानूनों को लागू करने के बीच संतुलन बनाने से तनाव हो सकता है। इन मुद्दों के बावजूद, कई लोग मानते हैं कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता भारत का असली धर्म है, जिसका उद्देश्य विभाजन के बजाय एकजुट करना है।