नया भारत: राम मन्दिर और राष्ट्र की नई वैचारिकी के केंद्र में राम ही शुभ
राकेश दुबे (पराक्रम मीडिया – बनारस)
आज के नए भारत में राष्ट्र एक नई वैचारिकी तय कर रहा है, राम और राम राज्य से किसी भी राजनीतिक दल को परहेज़ नहीं है। राम को भजने के तरीक़े को लेकर मतभेद ज़रूर दिख रहे हैं। आदर्श स्थिति तो यह है कि राम पर राजनीति नहीं होना चाहिए।बेशक संघ परिवार की आस्था और अस्मिता श्रीराम में निहित रही है, लेकिन भाजपा प्रत्येक चुनाव घोषणा-पत्र में राम मंदिर निर्माण का वायदा देश के साथ साझा करती रही है। अब वह वायदा पूरा हो रहा है।
संघ परिवार ‘राम लहर’ को बरकरार रखने के लिए किया सकारात्मक प्रयास
प्राण-प्रतिष्ठा से 1-2 दिन पहले ही जनता का मूड भांपने के लिए एक संस्थान ने सर्वे किया जिसमे करीब 43 प्रतिशत लोगों ने राम की प्राण-प्रतिष्ठा को ‘राष्ट्रोत्सव’ माना है, जबकि 23 प्रतिशत ने इसे भाजपा-संघ का कार्यक्रम करार दिया है। देखा जाए, तो ये 66 प्रतिशत लोग एक ही दिशा में सोच रहे हैं। अधूरे मंदिर से यह समारोह करने से कोई फर्क नहीं पड़ता, यह सोचने और मानने वाले करीब 56 प्रतिशत लोग थे। इसी संदर्भ में
54 प्रतिशत की सोच यह है कि इस समारोह में शामिल न होकर विपक्ष ने राष्ट्रीय स्तर पर ‘गलती’ की है, क्योंकि प्रभु राम राष्ट्रीय नायक ही नहीं, बल्कि आराध्य हैं
। आराध्य नायक से बहुत ऊपर होता है। यदि तय समय पर आम चुनाव होते हैं, राम मंदिर और प्राण-प्रतिष्ठा सबसे अहम चुनावी मुद्दा होंगे। संघ परिवार ‘राम लहर’ को बरकरार रखने के लिए व्यापक स्तर पर समर्थकों को राम मंदिर दर्शन के लिए अयोध्या लाता रहेगा।
अयोध्या ने जाति को महत्व नहीं दिया
राम की अयोध्या महज एक शहर नहीं, एक समदर्शी विचार है। अयोध्या भक्ति और समर्पण का प्रतीक है और भक्ति सर्वहारा का आंदोलन है। अयोध्या की सामाजिक व्यवस्था में विभाजन का आधार रोजगार है। व्यक्ति को श्रम या उत्पादन करना पड़ता है। भरत अपने हाथ से कपड़ा बुनते हैं। अयोध्या ने जाति को महत्व नहीं दिया। वहां आचरण श्रेष्ठ है, जाति नहीं। इसलिए शबरी, निषाद सब राम के बृहत्तर परिवार के सदस्य हैं। अयोध्या दुष्टों को भय और निराश्रितों को अभय देती है।
एक सर्वसहमति रही राम के लोकतांत्रिक मूल्यों पर
रामायण कथा की बात करें तो, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, राजा रामचंद्र:, रामभद्र:, राजीवलोचन, शाश्वत:, जानकी वल्लभ:, लिखित और अलिखित रामकथाओं में राम के ऐसे 108 नाम प्रचलित हैं। कहीं राम दशरथ पुत्र हैं, कहीं चक्रवर्ती सम्राट्, कहीं कौशल्या नंदन, तो कहीं जनार्दन। जैसा जिसने देखा, वैसा उसने माना। लेकिन अलग-अलग कालखंड में भी एक सर्वसहमति रही राम के लोकतांत्रिक मूल्यों पर। यह सच है कि राम राजतंत्र की व्यवस्था का हिस्सा थे, लेकिन राम राजतंत्र में गणतंत्र की घोषणा भी थे।
वाल्मीकि रामायण ‘लोकतंत्र की आधारशिला’ है।
वाल्मीकि रामायण ‘लोकतंत्र की आधारशिला’ है। राम का लोकतंत्र आज के लोकतंत्र से भी गहरा है। आमतौर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था बहुमत के सिद्धांत पर चलती है, मगर रामराज में बहुमत नहीं, सर्वमत चलता है। उनके लोकतंत्र में भाईचारा, प्रकृति, पर्यावरण की सुरक्षा, दलितों, आदिवासियों, वनवासियों के साथ सद्भाव है। पक्षियों के प्रति संवेदनशीलता, वन्यजीवों के लिए दोस्ताना व्यवहार है।
तुलसी की रामकथा के तीन वाचक और तीन श्रोता हैं—पहले शिव, फिर याज्ञवलक्य और काकभुशुंडी। श्रोता भी तीन हैं—पार्वती, भरद्वाज और गरुड़।
काकभुशुंडी कौवा जाति के हैं। पक्षियों में निकृष्ट। गरुड़ पक्षियों में श्रेष्ठ। काकभुशुंडी के पांडित्य के कारण ही गरुड़ उनके शिष्य बनते हैं। यानी पिछड़ी जाति का कोई भी व्यक्ति अगर पंडित है, ज्ञानी और गुणी है, तो वह पूज्य है। राम हमारे देश की उत्तर-दक्षिण एकता के अकेले सूत्रधार हैं। इसलिए अयोध्या का यह मंदिर हमारे देश की सामाजिक, भौगोलिक एकता व अखंडता का प्रतीक भी बनेगा।
राष्ट्र की नई वैचारिकी के केंद्र में राम
राम जिस धर्म, मर्यादा, विनय और शील के लिए जाने जाते हैं। उसकी जननी ‘अयोध्या’ है। अयोध्या बाकी दुनिया के लिए प्रेरणास्थल है। मंदिर के जरिये इसे और विस्तार मिलेगा। अयोध्या के इस गौरव का विस्तार भारतीय जाति की खोई गरिमा के प्रकटीकरण का एक उपक्रम होगा। अयोध्या वीतरागी है। भक्ति में डूबी अयोध्या का चरित्र अपने नायक की तरह धीर, शांत और निरपेक्ष है। राष्ट्र की नई वैचारिकी के केंद्र में राम और राम राज्य रहे तो भारत के लिए शुभ होगा।