संविधान: दुविधा ग्रस्त मानसिकता से पीड़ित है नागरिकता और राष्ट्रीयता का वास्तविक अर्थ
मृत्युंजय झा (आरएसएस कार्यकर्ता)
राष्ट्रीयता का मतलब उस देश से है जहाँ कोई व्यक्ति पैदा हुआ है। नागरिकता क्या दर्शाती है? यह वैधता है, जिसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति को किसी भी देश में अधिकारियों के साथ पंजीकृत किया गया है। एक व्यक्ति जन्म से ही किसी निश्चित देश का मूल निवासी होता है।
संविधान में यद्यपि एक ही नागरिकता या सिंगल सिटीजनशिप कहा गया है परन्तु भाषाई अल्पसंख्यक, धार्मिक अल्पसंख्यक, अनुसूचित अल्पसंख्यक आदि को अलग-अलग सुविधाएं प्रदान करने के कारण सब पर समान रूप से सब कानून लागू नहीं हो पाते। जैसे बढ़ती जन-संख्या पर काबू पाने के लिए हम दो-हमारे दो का नारा दिया गया परन्तु यह सर्वविदित है कि इस्लाम ने चार-चार विवाहों की छूट दे रखी है और उन्हें यहां अल्पसंख्यक की श्रेणी में रखा जाने के कारण उस नारे का उनके लिए कोई अर्थ नहीं रह जाता। जन-संख्या का संतुलन बिगड़ कर सम्पूर्ण समाज व्यवस्था को बिगड़ता हुआ हम देख रहे हैं परन्तु द्विधाग्रस्त मानसिकता से संविधान ही प्रभावित है तो आम नागरिक क्या करे?
धारा 44 में निहित समान नागरिक कानून इस समस्या का एक मात्र समाधान हो सकता है परंतु दुविधा से ग्रस्त संविधान की ही कुछ धाराएं उसके क्रियान्वयन में बाधक बन जाती हैं।
नागरिकता और राष्ट्रीयता में क्या अंतर है?
वैसे देखा जाए तो नागरिकता और राष्ट्रीयता दोनों समतामूलक शब्द है। दोनों समानार्थी शब्द की परिभाषा है। नागरिकता और राष्ट्रीयता अक्सर एक-दूसरे के समानार्थी शब्दों के रूप में उपयोग किए जाते हैं।
राष्ट्रीयता की अवधारणा नैतिक या नस्लीय है, जबकि नागरिकता की अवधारणा कानूनी या न्यायिक प्रकृति की है। -राष्ट्रीयता जन्म और वंशानुक्रम द्वारा प्राप्त की जा सकती है और नागरिकता जन्म, वंशानुक्रम, प्राकृतिककरण व विवाह आदि द्वारा प्राप्त की जा सकती है। राष्ट्रीयता को नहीं बदला जा सकता, जबकि नागरिकता को बदला जा सकता है। राष्ट्रीयता को नहीं बदला जा सकता, जबकि नागरिकता को बदला जा सकता है, राष्ट्रीयता, अंतरराष्ट्रीय व्यापार से जुड़ी है, जबकि नागरिकता, देश की आंतरिक राजनीति से जुड़ी है, राष्ट्रीयता, दादा-दादी से मिलती है, जबकि नागरिकता, कानूनी मानदंडों के ज़रिए मिलती है।
आईये समझते है राष्ट्रीयता क्या है ?
राष्ट्र की पहचान उसकी राष्ट्रीयता ही है। भारत बहुत प्राचीन राष्ट्र है। कई भले-बुरे दिन देखते हुए भी विश्व में आदि, अनादि, अनंत, चिर-पुरातन, नित्य-नूतन राष्ट्र के रूप में जाना जाता है।
कवि इकबाल ने इसकी अमिटता का रहस्य जानने का प्रयत्न किया। यूनान, मिश्र, रोमां सब मिट गये जहां से- यह कहते हुए भारत के बारे में कहा कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।
इस ‘कुछ बात’ या रहस्य को भी उन्होंने स्पष्ट किया परन्तु शायद दुविधाग्रस्त मानसिकता के कारण ही उनकी कलम भी लड़खड़ाती नजर आती है। हिन्दू हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा यह लिखने के स्थान पर ‘हिन्दी है हम’ ऐसा वे लिख बैठे।
इसे भी जानें :
कुछ देशों में, नागरिकता और राष्ट्रीयता शब्दों का एक ही अर्थ में उपयोग किया जाता है।
एक व्यक्ति के पास एक से अधिक राष्ट्रीयता हो सकती है, लेकिन आमतौर पर एक ही समय में केवल एक नागरिकता हो सकती है।
आखिर यह मानसिक द्वन्द कैसे पैदा किया गया ? भारतीय राष्ट्रीयता है या नागरिकता?
जब की इस पंक्ति को ‘हिन्दोस्तां’ इस शब्द का संधि-विच्छेद किया जाए तो हिन्दू या हिन्द यह शब्द ध्वनित होता है, हिन्दी कदापि नहीं। परन्तु द्विधाग्रस्त मानसिकता उनको हिंदू लिखने से रोक रही थी और तर्कसंगत न होते हुए भी उन्होंने हिन्दी हैं हम कह कर अपने को विवादों से परे रखने का प्रयास किया। कुछ ऐसी ही द्विधाग्रस्त मानसिकता अपने संविधान निर्माताओं पर भी छायी रही होगी। संविधान में लिखा गया है कि राज्य का अपना कोई रिलीजन (धार्मिक-मत) नहीं होगा किन्तु यहां सभी रिलीजन अपने-अपने प्रचार करने की सुविधा प्राप्त कर सकेंगे।
राष्ट्रीयता के अधिकार और जिम्मेदारियां क्या है ?
राष्ट्रीयता किसी व्यक्ति के सांस्कृतिक, जातीय या राष्ट्रीय मूल को दर्शाती है। यह व्यक्ति की पहचान का एक हिस्सा है और इसमें भाषा, धर्म, इतिहास और संस्कृति शामिल हो सकती है।
अधिकार: राष्ट्रीयता के आधार पर किसी व्यक्ति को विशेष अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं।
जिम्मेदारियां: राष्ट्रीयता के आधार पर किसी व्यक्ति की कोई विशेष जिम्मेदारी नहीं होती है।
नागरिकता के अधिकार और जिम्मेदारियां क्या है ? rss thoughts
नागरिकता किसी देश के कानूनी ढांचे के अंतर्गत एक व्यक्ति की सदस्यता को दर्शाती है। एक नागरिक के रूप में, व्यक्ति को उस देश के अधिकार और जिम्मेदारियां प्राप्त होती हैं।
अधिकार: नागरिकों को मतदान करने का अधिकार, सरकारी नौकरी करने का अधिकार, कानूनी सुरक्षा, और अन्य कई अधिकार प्राप्त होते हैं।
जिम्मेदारियां: नागरिकों को कानूनों का पालन करना, कर का भुगतान करना, और देश की सेवा करने जैसी जिम्मेदारियां भी निभानी होती हैं।
आखिर भारत को हिन्दू देश कहने पर हम हिचकते क्यों है ?
जिस देश का विभाजन ही रिलीजन के आधार पर द्विराष्ट्रवाद को मानते हुए किया गया हो वहां अपने राष्ट्र का परिचय देने में संकोच क्यों? अपने आप को कैथोलिक कहलाने वाले, प्रोटेस्टेन्ट कहलाने वाले तथा इस्लामिक कहलाने वाले छोटे-बड़े सभी देश मानवतावादी माने जाते हैं, फिर भला अपने आप को हिन्दू देश कह कर हम मानवतावादी क्यों नहीं कहला सकते ?
फिर हिन्दू तो कोई सम्प्रदाय नहीं है, सभी सम्प्रदायों की समष्टि को हिन्दू कहा गया है। जिसने सभी मत-पंथों को समादर देते हुए यह कहा है कि जितने मत उतने ही पथ हैं इस विशाल दृष्टि को कोई संकुचित कहे तो उसे नासमझी ही कहना होगा।
अपने आप को हिन्दू कह कर ही हम वसुधैव कुटुम्बकम् की परम्परा को निभाने वाले देश बन सकते हैं। हिन्दुत्व ही यहां का राष्ट्रीयत्व हो। हमारा अतीत भी यही कहता है, भविष्य भी यही कहेगा। बस वर्तमान में व्याप्त इस दुविधा से हम मुक्त हो जाएं, यही पर्याप्त है। राष्ट्रीयता के मुद्दे पर संविधान के मुखर न होने का प्रमुख कारण यह दुविधा ही तो है।