हिन्दू धर्म: मृत्यु के बाद गंगा नदी में अस्थियां क्यों बहाई जाती हैं? जानें वैज्ञानिक कारण
According to the Hindu Religion Why are Ashes Thrown into the Ganga after Cremation
साधना जी (सत्यमेधा सत्संग)
आखिर गंगा में ही क्यों होती है अस्थियां विसर्जित ? asthi visarjan
पतित पावनी गंगा को देव नदी कहा जाता है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार गंगा स्वर्ग से धरती पर आई है। मान्यता है कि गंगा श्री हरि विष्णु के चरणों से निकली है और भगवान शिव की जटाओं में आकर बसी है। श्री हरि और भगवान शिव से घनिष्ठ संबंध होने पर गंगा को पतित पाविनी कहा जाता है। मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है।
सनातन हिंदू धर्म के अनुसार, दाह संस्कार के बाद मृतक की अस्थियों को गंगा नदी में विसर्जित करने की बड़ी पुरानी परम्परा है। इसके पीछे कई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण भी हैं, जैसे :
ganga me asthi visarjan ki kahani
पहला धार्मिक मान्यताएं:
हिन्दू धर्म में गंगा को मोक्षदायिनी माना जाता है इसलिए यह एक धार्मिक नदी भी है।
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार गंगा को भगवान विष्णु के चरणों से उत्पन्न हुआ माना जाता है।
इसी गंगा नदी को भगवान कृष्ण का आशीर्वाद मिला हुआ है।
ऐसी भी मान्यता है की गंगा में अस्थियां विसर्जित करने से मृतक की आत्मा को शांति मिलती है।
पुराणों के अनुसार गंगा में अस्थियां विसर्जित करने से मृतक को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
क्या है इस हिन्दू धर्म परंपरा का वैज्ञानिक कारण ?
वैज्ञानिक रूप से भी अस्थियाँ प्रवाहित करना गलत नही है क्योंकि नदी में प्रवाहित मनुष्य की अस्थियां समय-समय पर अपना आकार बदलती रहती हैं जो कहीं ना कहीं उस नदी से जुड़े स्थान को उपजाऊ बनाती हैं. हमारे धर्मो में जो भी रीतियाँ बनाई गईं हैं वे केवल धार्मिक कर्मकांड नही ब्लकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी खरी उतरतीं है
भारतीय भौगोलिक में गंगा के जल से ज़मीन के बड़े हिस्से की सिंचाई किया जाता है।
कृषि में गंगा के जल की उर्वरा शक्ति कम न हो, इसलिए इसमें अस्थियां विसर्जित की जाती हैं। क्योकि अस्थि या मानव हड्डियों से पर्याप्त उर्वरा प्राप्त होता है।
सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए मृत व्यक्ति की अस्थि को गंगा में विसर्जन करना उत्तम माना गया है। यह अस्थियां सीधे श्री हरि के चरणों में बैकुण्ठ जाती हैं।
मरने के बाद हरिद्वार क्यों जाते हैं?
मृतजनों के उद्धार हेतु हरिद्वार व प्रयाग की गंगा नदी में अस्थियों को विसर्जित किया जाता है । माना जाता जब भगीरथ गंगाजी को धरती पर लाए थे हरिद्वार में जैसे ही मां गंगा का आगमन हुआ भगीरथ जी के पूर्वजों की हड्डियों पर गंगाजी का पानी पड़ते ही उन्हे मुक्ति प्राप्त हुई। हरिद्वार के ब्रम्हकुंड में अस्थियों को विर्सजित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि मनुष्य की अस्थियां वर्षों तक गंगा नदी में ही रहती हैं. और जब वे अस्थियाँ गंगाजी में रहती हैं तब तक वह मृत व्यक्ति के द्वारा किए गए पाप कर्मो को क्षीण करती रहती हैं वह मृत व्यक्ति के लिए पुनर्जन्म का नया मार्ग खोलती हैं ।
तीन दिन बाद ही क्यों चुनी जाती हैं मृतक की अस्थियां?
भगवद गरुण पुराण के अनुसार आदमी के मरने और दाह संस्कार के तीसरे दिन बाद उसके अस्थियों के राख को एकत्रित करना जरूरी होता है क्योंकि मन्त्र विज्ञान के अनुसार मंत्रों के उच्चारण की सहायता से अस्थियों में आकाश एवं तेज तत्वों की संयुक्त तरंगों का युग्म होता है जो कि तीन दिनों लगभग 72 घण्टे के बाद कम होने लगती है। इसकी वजह से अस्थियों के चारों ओर निमित्त सुरक्षा कवच की क्षमता भी कम होने लगती है।
मृतक का दाह संस्कार करने के बाद उसकी राख या अस्थियों को गंगा नदी में प्रवाहित करने से मृतक की आत्मा शांति मिल जाती है।
आईये जानते है कि पौराणिक कथा क्या कहता है?
एक दिन देवी गंगा श्री हरि से मिलने बैकुण्ठ धाम गई और उन्हें जाकर बोली, “प्रभु ! मेरे जल में स्नान करने से सभी के पाप नष्ट हो जाते हैं लेकिन मैं इतने पापों का बोझ कैसे उठाऊंगी? मेरे में जो पाप समाएंगे उन्हें कैसे समाप्त करूंगी?” इस पर श्री हरि बोले,”गंगा! जब साधु, संत, वैष्णव आ कर आप में स्नान करेंगे तो आप के सभी पाप घुल जाएंगे।”
क्या कहता है गरुण पुराण ? asthi visarjan in varanasi
गरुड़ पुराण के दसवें अध्याय ऐसा जिक्र किया गया है की, जिसमें मृतक की अस्थियों या राख को गंगा जी में प्रवाहित करने का महत्व बताया गया है। कथा के अनुसार, पक्षीराज गरुड़, भगवान विष्णु से पूछते हैं कि हे स्वामी जब भी किसी की मृत्यु हो जाती है, तो मृतक के परिजन उसका दाह संस्कार क्यों कर देते हैं। और कुछ दिन बाद मृतक के परिवारजन उसे गंगा नदी में प्रवाहित क्यों कर देते है। इस पर भगवान विष्णु कहते हैं, मृतक का दाह संस्कार करने के बाद उसकी राख या अस्थियों को गंगा नदी में प्रवाहित करने से मृतक की आत्मा शांति मिल जाती है। क्योंकि पवित्र नदी गंगा उस व्यक्ति के सभी पाप नष्ट कर देती है।
गंगा नदी इतनी पवित्र है की प्रत्येक हिंदू की अंतिम इच्छा होती है उसकी अस्थियों का विसर्जन गंगा में ही किया जाए लेकिन यह अस्थियां जाती कहां हैं? इसका उत्तर तो वैज्ञानिक भी नहीं दे पाए क्योंकि असंख्य मात्रा में अस्थियों का विसर्जन करने के बाद भी गंगा जल पवित्र एवं पावन है। गंगा सागर तक खोज करने के बाद भी इस प्रश्न का पार नहीं पाया जा सका।
गंगा में अस्थि विसर्जन क्यों किया जाता है?
मां गंगा में अस्थियां विसर्जित करने से मृतक के परिवार को यह आश्वासन मिलता है कि आत्मा जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाएगी और एक सुरक्षित स्थान पर पहुंच जाएगी जहां उसे मोक्ष प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
अस्थि विसर्जन नहीं करने से क्या होता है?
पवित्र ग्रंथों के अनुसार, यदि मृत्यु के बाद अस्थि विसर्जन नहीं किया जाता है, तो आत्मा को कष्ट हो सकता है।
क्या कोई बेटी अस्थि विसर्जन कर सकती है?
अस्थि विसर्जन कौन कर सकता है? अस्थि विसर्जन दिवंगत आत्मा के बेटे, बेटी, भाई, बहन, पत्नी या पति द्वारा किया जा सकता है । अगर परिवार में पूजन करने के लिए कोई उपलब्ध नहीं है, तो कोई मित्र या प्रतिनिधि पंडित की मदद से अनुष्ठान कर सकता है।
अस्थि विसर्जन में कितना समय लगता है ? asthi visarjan kab karna chahiye
गंगा घाट पर अस्थि विसर्जन के कर्मकाण्ड में लगभग 30 मिनट से 2 घंटे का समय लगता है।
क्या अस्थि विसर्जन केवल गंगा नदी में ही किया जा सकता है?
नहीं, ऐसा कोई अतिआवश्यक नियम नहीं है। लेकिन हिन्दू पुराण और मान्यताओं के अनुसार अस्थि विसर्जन के लिए गंगा नदी को सबसे उपयुक्त माना जाता है, लेकिन कोई भी बहता हुआ जलस्रोत या नदी अस्थि विसर्जन के लिए उपयुक्त हो सकता है।
क्या मैं ऑनलाइन अस्थि विसर्जन asthi visarjan कर सकता हूँ?
हां, देश काल पात्र स्थिति के अनुसार यदि जातक या मृतक के घर वाले शारीरिक रूप से अस्थि विसर्जन करने में समर्थ और उपलब्ध नहीं है, तो वह ऑनलाइन अस्थि विसर्जन का विकल्प चुन सकते हैं। यह पूरी तरह से ठीक है इस प्रक्रिया में कर्मकांड पूरा किया जाता है और कई लोगों के लिए इसे पसंदीदा विकल्प माना जाता है।
अस्थि विसर्जन कौन कर सकता है?
हिन्दू धर्म ग्रन्थ के अनुसार मृतक आत्मा की अस्थि विसर्जन उसके बेटे, बेटी, भाई, बहन, पत्नी या पति द्वारा किया जा सकता है। यदि परिवार में पूजन करने के लिए कोई उपलब्ध नहीं है, तो कोई मित्र या प्रतिनिधि पंडित की मदद से अनुष्ठान कर सकता है। आज के डिजिटल युग के विकास के साथ, कोई भी व्यक्ति शारीरिक रूप से पूजन स्थल पर जाए बिना भी अस्थि विसर्जन पूजन ऑनलाइन कर सकता है। प्रयाग पंडित किसी भी देश के किसी भी व्यक्ति को ऑनलाइन अस्थि विसर्जन पूजन प्रदान करने में माहिर हैं।
सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए मृत व्यक्ति की अस्थि को गंगा में विसर्जन करना उत्तम माना गया है। यह अस्थियां सीधे श्री हरि के चरणों में बैकुण्ठ जाती हैं।
जिस व्यक्ति का अंत समय गंगा के समीप आता है उसे मरणोपरांत मुक्ति मिलती है। इन बातों से गंगा के प्रति हिन्दूओं की आस्था तो स्वभाविक है।
वैज्ञानिक दृष्टि से गंगा जल में पारा अर्थात (Mercury) विद्यमान होता है जिसकी वजह से हड्डियों में रहा कैल्शियम और फोस्फोरस पानी में घुल जाता है।
हिन्दू धर्म में क्या है वैज्ञानिक रहस्य ?
वैज्ञानिक दृष्टि से गंगा जल में पारा अर्थात (Mercury) विद्यमान होता है जिसकी वजह से हड्डियों में रहा कैल्शियम और फोस्फोरस पानी में घुल जाता है। जो जलजन्तुओं के लिए एक पौष्टिक आहार है। वैज्ञानिक दृष्टि से हड्डियों में गंधक (सल्फर) विद्यमान होता है । पारा और गंधक दोनों मिलकर मरकरी सल्फाइड साल्ट (Mercury Sulphite Salt) का निर्माण करते हैं। जो पानी में रहे बॅक्टेरिया का नाश करता है । और हड्डियों में बचा शेष कैल्शियम, पानी को स्वच्छ रखने का काम करता है।
धार्मिक दृष्टि से पारद शिव का प्रतीक है और गंधक शक्ति का प्रतीक है। सभी जीव अंततः शिव और शक्ति में ही विलीन हो जाते हैं।
(स्रोत : सत्यमेधा सत्संग प्रगतिशील आध्यात्मिक ग्रुप)