सत्यमेधा सत्संग: इस जगत में ऐसे रहो जैसे तुम अकेले हो
स्रोत – सत्यमेधा सत्संग
“तथाता का अर्थ है। इस जगत में ऐसे रहना जैसे तुम अकेले हो। न कुछ झगड़ने को, न कुछ कलह करने को, न कोई द्वंद्व, न कोई संघर्ष। तथाता का अर्थ है, जैसी चीजें हो जाएँ वैसी स्वीकार कर लेना।
मैंने सुना है, एक झेन फकीर रिंझाई एक रास्ते से गुजर रहा था। एक आदमी आया और उसने जोर से लात उसकी पीठ में मारी। तो फकीर गिर गया, और वह आदमी तो भाग कर चला गया। फकीर के साथ एक मित्र और थे। रिंझाई उठा और जहाँ से बात टूट गई थी, वहीं से उसने फिर शुरू कर दी, वह फिर चलने लगा। वह आदमी बहुत हैरान हुआ, जो साथ था। उसने कहा, “सुनिए, मैं तो भूल ही गया कि हम क्या बात कर रहे थे। और अब मैं उसमें उत्सुक भी नहीं हूँ। पहले मुझे यह बताइए, यह क्या हुआ? यह आदमी आपको लात मार कर गिरा गया, आपने कुछ कहा नहीं!”
यह उसकी कुछ परेशानी है भीतरी, वह जाने! इतना पक्का है कि कोई लात मारेगा तो बूढ़ा आदमी हूँ, शरीर गिर जाएगा। ऐसा वस्तुओं का स्वभाव है। वह जवान था, मैं बूढ़ा हूँ। उसने लात मारी, मैं गिर गया।
न कुछ झगड़ने को, न कुछ कलह करने को, न कोई द्वंद्व, न कोई संघर्ष
लात क्यों मारी यह वह सोचे, यह उसकी चिंता है। वह अपनी रात खराब करे। इससे मेरा कुछ लेना-देना नहीं। इतना मैं कहता हूँ कि शरीर कमजोर हो गया। शरीर कमजोर हो जाता है।”
ऐसी भाव-दशा का नाम तथाता है। इसलिए बुद्ध को ‘तथागत’ नाम दिया है। ‘तथागत’ का अर्थ है, जिसका पूरा जीवन तथाता हो गया। तुम कुछ भी कहो, वे कहेंगे हाँ। ऐसा वस्तुओं का स्वभाव है। और अन्यथा करने की कोई आकांक्षा नहीं है। जैसा है वैसा पूर्ण स्वीकृत। टोटल एक्सेप्टेंस तथाता है।
जो भी हो जीवन में उसको स्वीकार कर लेना और कहना- ऐसा जीवन का स्वभाव है। तुम धीरे-धीरे पाओगे तुम्हारी सब अशांति खो गई।
अशांत होने का मतलब ही यह होता है कि तुम स्वीकार नहीं करते। अशांत होने का मतलब यह होता है कि तुम कहते हो, कुछ इससे भिन्न हो सकता था। अशांत होने का मतलब है कि तुम कहते हो कि अभी कुछ दिन और जवान रह सकता था, कि इससे सुंदर स्त्री मिल सकती थी, कि इससे अच्छा लड़का हो सकता था, कि इससे बड़ा मकान हो सकता था, कि लोग इससे ज्यादा मेरा सम्मान करते। तुम यह मान कर चलते हो, इससे भिन्न हो सकता था; तो तुम्हारे जीवन में अशांति रहेगी।
तथाता का अर्थ है, जो हो गया वही हो सकता था। तुमने जो स्त्री चुनी है पत्नी के लिए, उसी स्त्री को तुम चुन सकते थे इसलिए चुनी है। यह कुछ अकारण नहीं हो गया। तुम जिस बच्चे को जन्म दे सकते थे उसको ही जन्म दिया है। वह कुछ अकारण आसमान से नहीं टपक गया। इसलिए अब रोज छाती मत पीटो, कि यह बुद्धू है, कि बेईमान है, कि चोर है।
तुमसे चोर पैदा हो सकता था, चोर पैदा हो गया। तुम्हें जो मिल सकता था वह मिल गया है। तुम्हें जो नहीं मिल सकता था वही नहीं मिला। तथाता का अर्थ है, अन्यथा की कोई आकांक्षा नहीं है। जैसा हो गया है उससे मैं राजी हूँ। क्योंकि अन्यथा हो ही नहीं सकता।
तब तुम कैसे अशांत होओगे? तब कैसा तनाव? तब तुम्हें ध्यान करने की क्या जरूरत?
बुद्ध ने कहा है, तथाता को तुम जो राजी हो गए, तो ध्यान व्यर्थ है।
क्या करोगे ध्यान करके! कैसी पूजा? कैसी प्रार्थना? क्या करना है?
सब अशांति से बचने के मार्ग हैं। लेकिन तथाता तो अशांति को जड़ से काट देती है, बचने का कोई सवाल ही नहीं है। तथाता परम-स्थिति है।”